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कविता

पूर्णिमा का चाँद

शमशेर बहादुर सिंह


चाँद निकला बादलों से पूर्णिमा का।
               गल रहा है आसमान।
एक दरिया उमड़ कर पीले गुलाबों का
               चूमता है बादलों के झिलमिलाते
               स्‍वप्न जैसे पाँव।

 

 


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